ग्रन्थ- परिचय
भगवान् ब्रह्मा द्वारा विरचित सृष्टि के आदिपुरुष ‘वेदपुरुष’ के छः अङ्गों (शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द) में से मुखस्थान पर विराजमान, दृश्यमान स्थावर जङ्गमात्मक जगत् के भूत-भविष्य का ज्ञान कराने वाले अतिप्राचीन ज्योतिषशास्त्रीय ग्रन्थों में भी प्राचीनतम ‘वेदाङ्गज्योतिषम्’ नामक प्रकृत ग्रन्थ ‘सोमाकर’ संस्कृत भाष्य एवं ज्योतिष मर्मज्ञ’ नयपालदेशीय आचार्य शिव राज कौण्डिन्यायन कृत हिन्दी व्याख्यान के साथ-साथ सारगर्भित, सुविस्तृत संस्कृत एवं संक्षिप्त हिन्दी भूमिका से अलंकृत है। साथ ही इसमें वेदाङ्गज्योतिषग्रन्थों का तुलनात्मक पाठ, हस्तलिखित मूल ग्रन्थ की छायाप्रति एवं अन्य उपयोगी परिशिष्ट भी पाठकों के भ्रमात्मक ज्ञान के निवारणार्थ समाविष्ट हैं। वैदिक परम्परा का परम प्रामाणिक एवं सर्वाङ्गपूर्ण यह ग्रन्थ पाठक को सृष्टि के विविध वैचित्र्यपूर्ण क्रियाकलापों से अवगत कराने में पूर्ण रूप से सहायक है। मूल ग्रन्थ पर निबद्ध ‘सोमाकर’ संस्कृत भाष्य ग्रन्थ के जटिलतम विषयों को भी ज्योतिषशास्त्रीय विद्वानों के समक्ष सुस्पष्ट करने में समर्थ है, साथ ही आचार्य कौण्डिन्यायनकृत भाषा भाष्य जड़मति लोगों को भी विषय का सम्यक् बोध कराने में अत्यन्त सहायक है।
इस प्रकार एकमात्र इसी अनुपम ग्रन्थ का सम्यक् रूप से अध्ययन कर ज्यौतिषशास्त्रीय समग्र विषयों का पूर्ण ज्ञान अवाप्त किया जा सकता है।
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