पुस्तक-परिचय
भारतीय चिन्तनधारा में ऋग्वेद का आधारभूत महत्त्व है तथा इसके अध्ययन से हमें मात्र वैदिक ऋषियों की दृष्टि का ही ज्ञान नहीं प्राप्त होता, अपितु परवर्त्ती संहिताओं तथा उपनिषदों के तथ्यों का भी ज्ञान प्राप्त होता है। उपनिषदों की अनेक धाराएं वैदिक तत्त्वों के क्रमिक विकास के रूप में हमारे सम्मुख आती हैं। ऋग्वेद के दार्शनिक परिशीलन से हमें इन धाराओं का उत्स ज्ञात होता है।
आधुनिक युग में अनेक विद्वानों ने ऋग्वेद का तात्त्विक परिशीलन किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ उसी श्रृंखला की एक कड़ी है। इसके अन्तर्गत ऋग्वेद की दार्शनिक पृष्ठभूमि का आकलन करते हुए वैदिक देवतत्त्व की समीक्षा की गई है, साथ ही ऋग्वेद में निहित दर्शन के पश्चात्कालिक स्वरूप को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ प्रमुख दार्शनिक सूक्तों जिनका वाच्यार्थ भी दार्शनिक है, का विमर्शात्मक अनुशीलन किया गया है। इस प्रकार प्रकृत ग्रन्थ ऋग्वेदीय दर्शन के अनुसन्धित्सुओं के लिए एक उपकारक ग्रन्थ सिद्ध होगा।
लेखक-परिचय
डॉ. मुरलीमनोहर पाठक का जन्म, उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के लार कस्बे में दिनाङ्क एक सितम्बर उन्नीस सौ तिरसठ ई० को हुआ था। संस्कृत का परम्परागत ज्ञान इन्हें अपने पूज्य पितामह आचार्य पं. जयराम पाठक से प्राप्त हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए. (संस्कृत), डी. फिल्० तथा एल-एल. बी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं। इसके अतिरिक्त सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से ‘साहित्याचार्य’ परीक्षा भी उत्तीर्ण की। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा प्रथम बार आयोजित ‘नेट’ परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद डॉ. पाठक अक्टूबर, सन् 1985 से सितम्बर 1990 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में कनिष्ठ एवं वरिष्ठ शोधछात्र के रूप में अध्ययन-अध्यापन करते रहे।
अक्टूबर 1990 से विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के स्नातकोत्तर संस्कृत-प्राध्ययनकेन्द्र में प्राध्यापक के रूप में कार्यरत डॉ. पाठक के लगभग दो दर्जन शोध आलेख हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषाओं में विभिन्न स्तरीय शोधपत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
डॉ. पाठक ने वर्ष 1991, 1995 तथा 1996 में म.प्र. संस्कृत अकादेमी द्वारा आयोजित नवोदित प्रतिभा समागम के अन्तर्गत अखिल भारतीय शास्त्रार्थ प्रतिस्पर्द्धा में प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया। अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन के 39वें अधिवेशन (वडोदरा-1998) में इन्हें सर्वोत्तम शोधपत्र प्रस्तुत करने का पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।
वर्तमान में आप श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली में कुलपति हैं.
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