दो भागों में प्रकाशित वैदिक विज्ञान की पूर्वपीठिका पर प्रस्तुत ‘सृष्टि-उत्पत्ति की वैदिक परिकल्पना’ नामक ग्रन्थ कतिपय नवतम वैज्ञानिक एवं वैदिक अनुसन्धानों को समाहित करते हुये नवीन कलेवर के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। ग्रन्थ में प्रकाश में लाया गया वैदिक विज्ञान लेखक की कल्पना नहीं है अपितु वेद में निहित सृष्टि-विज्ञान वैदिक द्रष्टाओं का अक्षय ज्ञान है जो उन्होंने आज से हजारों वर्षों (8 से 10 हजार) पूर्व अपनी कालजयी वाणी में साक्षात्कृत दर्शन के आधार पर मन्त्रों की अद्भुत भाषा में विन्यस्त किया और संजोया था। वह ज्ञान-विज्ञान जैसा ऋषियों के काल में सत्य दर्शन का प्रवक्ता था वैसा आज भी है और आगे भी रहेगा।
यह सृष्टि-विज्ञान दिव्य प्रेरणा के फलस्वरूप ऋषियों को प्राप्त हुआ ज्ञान है। क्योंकि सुदूर भूतकाल में प्रयोग सिद्ध ज्ञान के साधन का अभाव सिद्ध है तब दूसरा स्रोत दिव्य प्रेरणा ही है जिसके बिना इतनी सटीक विज्ञान की जानकारी जो आधुनिक प्रयोग सिद्ध मन्तव्यों को निहित कर रही है प्राप्त होना असम्भव है। अतः इस ज्ञान में परिमार्जन परिवर्तन का प्रश्न नहीं उठता।
23 cm. xxi+474
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