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वैदिक साहित्य में उपनिषदों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सभी उपनिषदें ब्रह्मविद्या का प्रतिपादन करती
हैं। इनमें वेद मन्त्रों के गूढ़ अर्थों की व्याख्या की गई है। प्रत्येक उपनिषद किसी न किसी वेद से सम्बद्ध है। इसी प्रकार पृथक्-पृथक् योगोपनिषदें भी पृथक्-पृथक् वेदों से सम्बद्ध हैं। जिनका पूरा विवरण इस ग्रन्थ की भूमिका में दिया गया है। प्रस्तुतग्रन्थ में योगविषयक 20 उपनिषदों को संस्कृत मूल श्लोक तथा उनका हिन्दी अनुवाद अत्यन्त सरल एवं सुबोध भाषा में यथावश्यक टिप्पणियों के साथ दो खण्डों में प्रस्तुत किया गया है । अन्त में विस्तृत शब्दानुक्रमणिका से समलंकृत यह ग्रन्थ शोधार्थियों के लिए विशेष महत्व का है।
आशा है कि यह ग्रन्थ-रत्न योगियों, सामान्य पाठकों सहित योग पर शोध करने वाले गवेषकों के लिये भी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।
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