पुस्तक परिचय
आधुनिक समय में सनातन धर्म का अभिप्राय मन्दिर, तीर्थ, उत्सव, तर्पण इत्यादि को ही समझा जाता है। इसी कारण से प्राचीन मनीषियों का सञ्चित ज्ञान और उन पर आधारित आध्यात्मिक, सामाजिक तथा वैयक्तिक जीवन में मूल्यबोध के विषय में अधिकांश लोगों में स्पष्ट और सुनियोजित धारणा नहीं बन पायी है। फलस्वरूप अन्य धर्मों और मतों के सुसंगत, आधुनिक, वैज्ञानिक तथ्य उनके मस्तिष्क में स्थान बना लेते हैं। वर्तमान हिन्दू समाज को अपने सनातन धर्म की मान्यताओं तथा तथ्यों का विधिवत ज्ञान तथा उनको अपने जीवन में यथायोग्य स्थान देने के लिए स्पष्ट ज्ञान होना आवश्यक है।
सनातन धर्म के इन्हीं वैज्ञानिक तथा तर्कपूर्ण तथ्यों से वर्तमान पीढ़ी के छात्रों को परिचय कराने के उद्देश्य से हिन्दू कालेज काशी की विद्वत् परिषद् ने 1916 में Sanatan Dharma नामक ग्रन्थ को आंग्लभाषा में सम्पादित करके प्रकाशित किया था।
प्रस्तुत ग्रन्थ उसी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद है। सनातन धर्म पुस्तक के माध्यम से सामान्य जनमानस को धर्म के आयामों का ज्ञान सरलता से प्राप्त होगा। इसमें सृष्टि और परमात्म-तत्त्व, समान्य हिन्दू धार्मिक आचार और परम्पराओं तथा नैतिक शिक्षाओं का भी विवेचन किया गया है।
लेखक परिचय
डॉ० अमल शिव पाठक
कानपुर के एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्म। लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. और पी. एच. डी. की शिक्षा। ‘प्राचीन भारतीय नाट्य मंच’ पर शोधप्रबन्ध । भारतीय स्टेट बैंक में लम्बे समय तक सेवारत रहने के बाद इस समय मौलिक लेखन और संस्कृत साहित्य के शोधकार्य में संलग्न ।
डॉo पाठक ने अभी तक संस्कृत साहित्य की विभिन्न पाण्डुलिपियों को सम्पादित करके प्रकाशित किया। इनमें नाट्यलोचन, कामसूत्र, चतुर चिन्तामणि नाट्यप्रदीप, अभिराम मणि नाटक, वात्स्यायनसूत्रवृत्ति अदि प्रमुख हैं। आपने विदेशों में संस्कृत सीखने की अभिरुचि को देखते हुए ‘सरल संस्कृत व्याकरण ‘नामक पुस्तक भी प्रकाशित किया है।
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