महीधर द्वारा रचित मन्त्रमहोदधि नाना ग्रन्थों में विकीर्ण देवमन्त्रों का विधिपूर्वक स्वरूप, अनुष्ठान-विधि आदि आवश्यक तान्त्रिक विषयों का विवरण प्रस्तुत करता है । यह निःसन्देह तन्त्रशास्त्र का एक श्लाघनीय विश्वकोश है ।
महीधर वत्सगोत्रीय अहिच्छत्रीय ब्राह्मण थे ये मूलत: अहिच्छत्र (उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मण्डल का रामनगर ) के निवासी थे संसार की असारता से प्रेरित होकर ये काशी चले आए और अपने ‘कल्याण’ नामधारी पुत्र के कहने से कालभैरव के समीपस्थ रहकर इन्होंने १६४५ विक्रमी संवत् में इस ग्रन्थ की रचना की ।
मन्त्रमहोदधि २५ तरङ्गों में विभक्त है ग्रन्थकार की ‘नौका’ नामक स्वोपज्ञ टीका भी है जो टिप्पणीमात्र है कठिन स्थलों का ही इसमें विवेचन है । मन्त्रमहोदधि के प्रथम तरङ्ग में पूजाविषयक सामान्य तथ्यों का निर्देश है तदनन्तर एक देवता के विषय में सम्पूर्ण एक तरङ्ग विहित है यथा गणेश ( २ तरङ्ग ), दक्षिण काली ( ३ तरङ्ग ), तारा (४ और ५ तरङ्ग ), छिन्नमस्ता ( ६ त० ), नाना यक्षिणी प्रयोग (७ त०), बाला (८ त० ) अन्नपूर्णा, गंगा (९ त० ), बगलामुखी (१० त० ), श्रीविद्या (११ एवं १२ त०), हनुमान् (१३ त० ). विष्णु (१४ त० ), सूर्य (१५ त० ), महामृत्युञ्जय (१६ त० ), कार्तवीर्यार्जुन (१७ त० ), कालरात्रि (१८ त० ), चरणायुध एवं शास्ता आदि (१९ त० ) बीसवाँ तरङ्ग विशेष रूप से यन्त्र साधन का है इक्कीसवाँ तरङ्ग पूजातरङ्ग है इस प्रकार २१ से लेकर २५ तरंग तक नित्य पूजा, विशेष अर्घ्य, मन्त्रशोधन एवं षट्कर्म का विस्तृत विवेचन है ।
महीधर लक्ष्मीनृसिंह के उपासक थे उनकी निम्न नृसिंह वन्दना सप्तविभक्ति से समन्वित होने से नितान्त मनमोहक है
राजा लक्ष्मीनृसिंहो जयति, सुखकरं श्रीनृसिंहं भजेयं
दैत्याधीशा महान्तोऽहसत नृहरिणा श्रीनृसिंहाय नौमि ।
सेव्यो लक्ष्मीनृसिंहादपर इह नहि श्रीनृसिंहस्य पादौ
सेवे लक्ष्मीनृसिंहे वसतु मम मनः श्रीनृसिंहाव भक्तम् ॥
~ मन्त्रमहोदधि २५. १३०, पृ० ७९७
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