‘क्रियायोग’ के विषय में एक ग्रन्थ लिखने की अभिलाषा मेरे मन में बहुत वर्षों से थी। सर्वप्रथम क्रियायोग के विषय में थोड़ी सी जानकारी हमें स्वामी परमहंस योगानन्द की पुस्तक ‘योगीकथामृत’ से मिली, जिसके 14 पृष्ठों में स्वामी जी ने क्रियायोग के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया है। कृ धातु से निष्पन्न क्रिया शब्द और योग के अर्थ में परमहंस जी ने लिखा है- “एक विशिष्ट कर्म या विधि (क्रिया) द्वारा अनन्त परमतत्त्व के साथ मिलन (योग)।” स्वामी जी के अनुसार ‘इस विधि का निष्ठापूर्वक अभ्यास करने वाला योगी धीरे-धीरे कर्मबन्धन से मुक्त हो जाता है।’ परमहंस जी स्वयं लिखते हैं कि ‘कुछ प्राचीन यौगिक विधि – निषेधों के कारण सर्वसामान्य के लिये लिखी जाने वाली पुस्तक में मैं क्रियायोग का पूर्ण विवरण नहीं दे सकता। इसकी वास्तविक प्रविधि योगदा सत्संग सोसाइटी / सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के किसी अधिकृत क्रियावान् से सीखनी चाहिये।’ इस विधि के अभ्यास से क्रियावान् रक्त कार्बन रहित होकर आक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इस अतिरिक्त आक्सीजन से अणुओं का स्वेच्छया ह्रास रुक जाता है। इससे योगीजन अपने शरीर को स्वेच्छया प्रकट या अन्तर्धान कर सकते हैं। क्रियायोग के असीम अभ्यास से योग की परा सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं, यथा आकाश-गमन, परकाया प्रवेश, एक से अधिक शरीर धारण कर लेना, इच्छा-मृत्यु आदि। ‘क्रियायोग’ में यम, नियम, आसन, प्राणायाम का नियमित व्यावहारिक अभ्यास होना चाहिये। इसके बाद बहिरंग योग सिद्ध हो जाने पर अन्तरंग योग-प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के अभ्यास में प्रवेश करना चाहिये। जहाँ तक क्रियायोग के प्रयोग पक्ष का प्रश्न है; उसमें विधिपूर्वक और नियमित अभ्यास करना चाहिये। उत्तरी भारत में दीक्षा देने के पूर्व क्रियावान् को कम से कम ‘शक्ति संचार प्रविधि’ का अभ्यास छः महीने तक करने का निर्देश है। इसमें 39 शारीरिक क्रियाओं का अभ्यास किया जाता है। दक्षिण भारत में सीधे क्रिया बाबा जी से प्राप्त 144 क्रियाओं के अभ्यास का निर्देश है। बिना इनके अभ्यास के दीक्षा देना असम्भव है। ‘क्रियायोग के क्रम में नाड़ी शोधन, नाभिक्रिया, तालव्यक्रिया (खेचरी मुद्रा), गुरुपूजा, सोऽहं या हंस साधना, महामुद्रा, सुषुम्णा-दोलन क्रिया, मुख्य क्रिया (चार चरणों में), ज्योतिक्रिया, ध्यान, ओम् प्रविधि (अन्तः ओम् का अभ्यास), बाह्य ओम् का अभ्यास अपरिहार्य है। ग्रन्थ के प्रथम पृष्ठ पर एक यन्त्र बना है, वह बाबा जी का यन्त्र है, जिसको चाँदी या स्वर्ण के पत्र पर बनवाकर क्रिया बाबा जी की पूजा की जा सकती है। जनवरी 2019 में मैंने स्वयं क्रियायोग में दीक्षा सी. इसीलिये इसके विषय में कुछ लिखने का साहस कर सका।
क्रिया-योग (Kriya Yog)
₹650.00 – ₹1,185.00
Kriya Yoga (Hindi)
AUTHOR | Prof. Ramashankar Mishra |
---|---|
YEAR |
2022
|
PAGES | 476 |
LANGUAGE | Hindi |
BINDING | Hardbound | Paperback |
ISBN | 81-7702-491-4 |
PUBLISHER | Pratibha Prakashan |
पुस्तक परिचय
‘क्रियायोग’ के विषय में एक ग्रन्थ लिखने की अभिलाषा मेरे मन में बहुत वर्षों से थी। सर्वप्रथम क्रियायोग के विषय में थोड़ी सी जानकारी हमें स्वामी परमहंस योगानन्द की पुस्तक ‘योगीकथामृत’ से मिली, जिसके 14 पृष्ठों में स्वामी जी ने क्रियायोग के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया है। कृ धातु से निष्पन्न क्रिया शब्द और योग के अर्थ में परमहंस जी ने लिखा है- “एक विशिष्ट कर्म या विधि (क्रिया) द्वारा अनन्त परमतत्त्व के साथ मिलन (योग)।” स्वामी जी के अनुसार ‘इस विधि का निष्ठापूर्वक अभ्यास करने वाला योगी धीरे-धीरे कर्मबन्धन से मुक्त हो जाता है।’ परमहंस जी स्वयं लिखते हैं कि ‘कुछ प्राचीन यौगिक विधि – निषेधों के कारण सर्वसामान्य के लिये लिखी जाने वाली पुस्तक में मैं क्रियायोग का पूर्ण विवरण नहीं दे सकता। इसकी वास्तविक प्रविधि योगदा सत्संग सोसाइटी / सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के किसी अधिकृत क्रियावान् से सीखनी चाहिये।’ इस विधि के अभ्यास से क्रियावान् रक्त कार्बन रहित होकर आक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इस अतिरिक्त आक्सीजन से अणुओं का स्वेच्छया ह्रास रुक जाता है। इससे योगीजन अपने शरीर को स्वेच्छया प्रकट या अन्तर्धान कर सकते हैं। क्रियायोग के असीम अभ्यास से योग की परा सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं, यथा आकाश-गमन, परकाया प्रवेश, एक से अधिक शरीर धारण कर लेना, इच्छा-मृत्यु आदि। ‘क्रियायोग’ में यम, नियम, आसन, प्राणायाम का नियमित व्यावहारिक अभ्यास होना चाहिये। इसके बाद बहिरंग योग सिद्ध हो जाने पर अन्तरंग योग-प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के अभ्यास में प्रवेश करना चाहिये। जहाँ तक क्रियायोग के प्रयोग पक्ष का प्रश्न है; उसमें विधिपूर्वक और नियमित अभ्यास करना चाहिये। उत्तरी भारत में दीक्षा देने के पूर्व क्रियावान् को कम से कम ‘शक्ति संचार प्रविधि’ का अभ्यास छः महीने तक करने का निर्देश है। इसमें 39 शारीरिक क्रियाओं का अभ्यास किया जाता है। दक्षिण भारत में सीधे क्रिया बाबा जी से प्राप्त 144 क्रियाओं के अभ्यास का निर्देश है। बिना इनके अभ्यास के दीक्षा देना असम्भव है। ‘क्रियायोग के क्रम में नाड़ी शोधन, नाभिक्रिया, तालव्यक्रिया (खेचरी मुद्रा), गुरुपूजा, सोऽहं या हंस साधना, महामुद्रा, सुषुम्णा-दोलन क्रिया, मुख्य क्रिया (चार चरणों में), ज्योतिक्रिया, ध्यान, ओम् प्रविधि (अन्तः ओम् का अभ्यास), बाह्य ओम् का अभ्यास अपरिहार्य है। ग्रन्थ के प्रथम पृष्ठ पर एक यन्त्र बना है, वह बाबा जी का यन्त्र है, जिसको चाँदी या स्वर्ण के पत्र पर बनवाकर क्रिया बाबा जी की पूजा की जा सकती है। जनवरी 2019 में मैंने स्वयं क्रियायोग में दीक्षा सी. इसीलिये इसके विषय में कुछ लिखने का साहस कर सका।
‘क्रियायोग’ के विषय में एक ग्रन्थ लिखने की अभिलाषा मेरे मन में बहुत वर्षों से थी। सर्वप्रथम क्रियायोग के विषय में थोड़ी सी जानकारी हमें स्वामी परमहंस योगानन्द की पुस्तक ‘योगीकथामृत’ से मिली, जिसके 14 पृष्ठों में स्वामी जी ने क्रियायोग के बारे में संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया है। कृ धातु से निष्पन्न क्रिया शब्द और योग के अर्थ में परमहंस जी ने लिखा है- “एक विशिष्ट कर्म या विधि (क्रिया) द्वारा अनन्त परमतत्त्व के साथ मिलन (योग)।” स्वामी जी के अनुसार ‘इस विधि का निष्ठापूर्वक अभ्यास करने वाला योगी धीरे-धीरे कर्मबन्धन से मुक्त हो जाता है।’ परमहंस जी स्वयं लिखते हैं कि ‘कुछ प्राचीन यौगिक विधि – निषेधों के कारण सर्वसामान्य के लिये लिखी जाने वाली पुस्तक में मैं क्रियायोग का पूर्ण विवरण नहीं दे सकता। इसकी वास्तविक प्रविधि योगदा सत्संग सोसाइटी / सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के किसी अधिकृत क्रियावान् से सीखनी चाहिये।’ इस विधि के अभ्यास से क्रियावान् रक्त कार्बन रहित होकर आक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इस अतिरिक्त आक्सीजन से अणुओं का स्वेच्छया ह्रास रुक जाता है। इससे योगीजन अपने शरीर को स्वेच्छया प्रकट या अन्तर्धान कर सकते हैं। क्रियायोग के असीम अभ्यास से योग की परा सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं, यथा आकाश-गमन, परकाया प्रवेश, एक से अधिक शरीर धारण कर लेना, इच्छा-मृत्यु आदि। ‘क्रियायोग’ में यम, नियम, आसन, प्राणायाम का नियमित व्यावहारिक अभ्यास होना चाहिये। इसके बाद बहिरंग योग सिद्ध हो जाने पर अन्तरंग योग-प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि के अभ्यास में प्रवेश करना चाहिये। जहाँ तक क्रियायोग के प्रयोग पक्ष का प्रश्न है; उसमें विधिपूर्वक और नियमित अभ्यास करना चाहिये। उत्तरी भारत में दीक्षा देने के पूर्व क्रियावान् को कम से कम ‘शक्ति संचार प्रविधि’ का अभ्यास छः महीने तक करने का निर्देश है। इसमें 39 शारीरिक क्रियाओं का अभ्यास किया जाता है। दक्षिण भारत में सीधे क्रिया बाबा जी से प्राप्त 144 क्रियाओं के अभ्यास का निर्देश है। बिना इनके अभ्यास के दीक्षा देना असम्भव है। ‘क्रियायोग के क्रम में नाड़ी शोधन, नाभिक्रिया, तालव्यक्रिया (खेचरी मुद्रा), गुरुपूजा, सोऽहं या हंस साधना, महामुद्रा, सुषुम्णा-दोलन क्रिया, मुख्य क्रिया (चार चरणों में), ज्योतिक्रिया, ध्यान, ओम् प्रविधि (अन्तः ओम् का अभ्यास), बाह्य ओम् का अभ्यास अपरिहार्य है। ग्रन्थ के प्रथम पृष्ठ पर एक यन्त्र बना है, वह बाबा जी का यन्त्र है, जिसको चाँदी या स्वर्ण के पत्र पर बनवाकर क्रिया बाबा जी की पूजा की जा सकती है। जनवरी 2019 में मैंने स्वयं क्रियायोग में दीक्षा सी. इसीलिये इसके विषय में कुछ लिखने का साहस कर सका।
Bind Type | Hardbound, Paperback |
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