शिक्षा ही किसी समाज और राष्ट्र की प्रगति का आधार होती है। शिक्षा के आधार पर ही राष्ट्र का निर्माण होता है। इसीलिए शिक्षा ही किसी समुन्नत एवं समृद्ध राष्ट्र की पहचान है। यही उसका मापक है। यदि व्यक्ति का अस्तित्व भौतिक पदार्थों से टिकता है तो राष्ट्र का अस्तित्व विचार तथा चेतना से तय होता है। विचार तथा चेतना का सीधा सम्बन्ध शिक्षा से है। शिक्षा वह है जो आत्मा का उन्नयन करे, शरीर और मन को स्वस्थ्य रखे तथा मानव को रोजी- रोटी कमाने के लिए तैयार करे। भौतिकता से उत्पन्न शिक्षा व्यापक असंतोषजनक विद्रोह को जन्म देती है, सृजन को नहीं। आवश्यकता है समग्रता की। समग्रता का अर्थ है- सम्पूर्ण मानव जीवन, मानव विश्व के सहित एक है। शिक्षा जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है। यह जीवन से अलग नहीं है। भारतीय परम्परा के महान चिन्तकों, दार्शनिकों व शिक्षाशास्त्रियों की दृष्टि में शिक्षा व विद्या को सर्वश्रेष्ठ धन माना गया है। शिक्षा की आधार शिला और उसकी संरचना को निर्मित करने, भारतीय समाज में नवजागरण लाने का संकल्प, सामाजिक बुराइयों को दूर करने में और सकारात्मक चिंतन का उद्घोष और प्रेरणा देने का कार्य इन्हीं समाज सुधारकों और शिक्षाशास्त्रियों के प्रयासों से संभव हो सका है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रमुख भारतीय शैक्षिक चिन्तकों यथा-स्वामी श्रद्धानन्द जी, महामना पं मदन मोहन मालवीय, जे० कृष्णमूर्ति, गिजुभाई बधेका, विनोबा भावे, पं० दीनदयाल उपाध्याय प्रभृति विद्वानो का संक्षिप्त जीवन परिचय, व्यक्तित्व एवं कृतित्व के साथ शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान की मीमांसा प्रस्तुत की गयी है।
Reviews
There are no reviews yet.