परम्परा में पृथ्वी को अश्वक्रान्ता कहा जाता है। सेना में अश्वसेना महत्वपूर्ण होती है। इसीलिए भोज के समरांगणसूत्रधार में दुर्ग या राजप्रासाद क्षेत्र में अश्वशाला निर्माण की भी चर्चा है। भोज के विभिन्न ज्योतिष ग्रन्थों में अश्वसम्बन्धी धर्मशास्त्रीय नियम लिखे गये हैं।
राजाभोज की अश्वविद्या से सम्बन्धित शालिहोत्र नामक ग्रन्थ पहले ही प्रकाशित हो चुका है । माघ के शिशुपाल महाकाव्य की टीका में मल्लिनाथ ने अश्वगति सम्बन्धी भोज के कतिपय श्लोक उद्धृत किये हैं। भोज के युक्तिकल्पतरु में लगभग पौने दो सौ अश्वसंबंधी श्लोक हैं। भोज की शृंगारमंजरीकथा में अश्व का विस्तृत विवरण दिया गया है।
इस विश्रांतविद्याविनोदः ग्रन्थ में कुल 113 अध्याय हैं। जो बहुधा छोटे-छोटे हैं। अध्यायों में अश्व की विभिन्न विशेषताओं और रोगों का स्पष्ट परिचय और उपचार वर्णित है। पुस्तक में आर्या, इन्द्रवज्रा उपेन्द्रवज्रा, वसंततिलका, मालिनी, मन्दाक्रान्ता, शिखरिणी, शार्दूलविक्रीडित के साथ ही कहीं-कहीं स्रग्धराछन्द भी हैं। भाषा सरल परन्तु ललित है।
मूल हस्तलिखित पाण्डुलिपि से प्रथम बार प्रकाशित होने वाला यह ग्रन्थ विद्वानों तथा अनुसन्धान कर्त्ताओं के लिये अत्यन्त उपादेय सिद्ध होगा ।
डॉ० भगवतीलाल राजपुरोहित 2 नवम्बर 1943 को मध्यप्रदेश के धार जिले के चन्ददोडिया ग्राम में जन्मे भगवतीलाल राजपुरोहित का पल्लवन पारम्परिक परिवेश में हुआ। संस्कृत, हिन्दी, प्राचीन इतिहास, लोकसाहित्य के साथ ही नाट्य, काव्य, उपन्यास सहित विभिन्न विधाओं में निरन्तर रचनात्मक लेखन एवं शोध के साथ ही उनकी दिशाएँ व्यापक होती गयी। नूतन और पुरातन की गंगाजमुनी धारा उनकी रचनाओं में देखी-परखी जा सकती हैं। इस तरह वे उन विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पहचान बना चुके हैं।
प्रकाशित कृतियाँ- राजा भोज का रचना विश्व प्रतिभा भोजराजस्य, भोजराज, रघुवंशफल और कालिदास (सभी पुरस्कृत), राजा भोज, राजाभोज कृत स्तुति एवं अभिलेख, युक्तिकल्पतरुः, लस्तकः (काव्यसंग्रहः) भोजदेव कालिदास, कालिदास का वागर्थ, उज्जयिनी और महाकाल, वररुचि, संस्कृत भाषा और साहित्य, संस्कृत नाटक और रंगमंच, भारतीय कला और संस्कृति, भारतीय अभिलेख और इतिहास, हिन्दी प्रकृति और प्रवृत्ति, मालवी संस्कृति और साहित्य, विद्योत्तमा (उपन्यास). वीणावासवदत्ता, पद्मप्राभृतक उभयाभिसारिका. संस्कृत नाटकों के हिन्दी और मालवी मंचोपयोगी रूपांतर, मेघदूत का मालवी रूपांतर हलकारो बादल, मालवी लोकगीत (सानुवाद संपादन). भारतीय अभिलेख, (वाचन संपादन) भारत के प्राचीन राजवंश (वि० ना० रेऊ कृत का संपादन). भुजबलनिबन्धः विश्रान्तविद्याविनोदः कितनी ही पुस्तकें प्रकाशनाधीन । और अन्य पुरस्कार सम्मान म०प्र० उच्च शिक्षा अनुदान आयोग का डॉ. राधाकृष्णन् सम्मान (1990, 1992), म. प्र. संस्कृत अकादेमी का भोज सम्मान (1974, 1990 2000). म०प्र० साहित्य परिषद् का बालकृष्णशर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार (1977) के साथ ही कई अन्य सम्मान। सम्प्रति सान्दीपनि महाविद्यालय उज्जैन के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के सेवानिवृत्त अध्यक्ष।
सम्पर्क- बिलोटीपुरा, उज्जैन 456006 (म०प्र०)
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