पुस्तक परिचय
वैदिक वाङ्मय वह विज्ञान सागर है जिसकी गम्भीरता एवं विस्तार अनन्त है। विज्ञान की प्राचीनतम महत्ता इसी से स्पष्ट है कि ऋषियों ने निर्देशित किया “विज्ञानमुपास्व” विज्ञान की उपासना करो, “विज्ञानमानन्दं ब्रह्म” आनन्द तथा विज्ञान ब्रह्म स्वरूप है।
आधुनिक विज्ञान जिन सीमाओं से अवरुद्ध है, वैदिक विज्ञान की सहायता से उनसे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। वैदिक अक्षर-विज्ञान, पद-विज्ञान, ध्वनि-विज्ञान, शब्द और वाक्य-विज्ञान के साथ ही गणित, आयुर्वेद, पुरातत्त्व, रसायन, शल्य चिकित्सा, भौतिकी, पादप, जीव, ज्योतिष, नक्षत्र विज्ञान के अतिरिक्त समाज विज्ञान, राजनीति, अर्थ, वाणिज्य के तथ्यों से सम्पूरित प्रस्तुत पुस्तक “वैदिक विज्ञान-परम्परा के विविध आयाम” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में पढ़े गये शोध पत्रों पर विधिवत विमर्श, विचार-विमंथन के उपरान्त प्राप्त निष्कर्षों का संकलन है।
पुस्तक को दो भागों (हिन्दी भाषा के शोध पत्रों एवं आंग्ल भाषा के शोध पत्रों) में नियोजित किया गया है । ग्रन्थ में कुल 56 लेखों का सन्निवेश है जो वैदिक विज्ञान के विविध पक्षों पर महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं। यह ग्रन्थ जिज्ञासुजनों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं विभिन्न अनुशासनों के अध्यापक बन्धुओं के लिए उपयोगी होगा। साथ ही ग्रन्थालयों के लिए महत्वपूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में विशेष संग्रहणीय रहेगा।
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लेखक परिचय
गोरखपुर जनपदान्तर्गत बाँसगाँव तहसील के साईताल ग्राम में 1956 ई. में प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में डॉ. अजय कुमार पाण्डेय का जन्म हुआ। स्नातकोत्तर उपाधि 1978 ई. में प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विषय में अर्जित कर पी-एच. डी. उपाधि 1990 ई. में (प्राचीन भारतीय शस्त्रास्त्रों का पुरातात्त्विक अधययन) विषय पर प्राप्त किये। पुन: 2001 ई. में “डाक्टर ऑफ लेटर्स ” (डी. लिट्.) उपाधि (भारतेरानी वाङ्मय एवं पुरातत्त्व में शस्त्रास्त्रों का पुरातात्त्विक अध्ययन) विषय पर अर्जित किये। दोनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। भारत सरकार प्रतिरक्षा मंत्रालय द्वारा पी-एच.डी. पुस्तक पर द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से वृहद् शोध प्रकल्प एवं लघु शोध प्रकल्प पर कार्य पूर्ण कर चुके हैं। साथ ही भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला के एसोसिएट शिप के तीन वर्षों की कार्यावधि को पूर्ण किये हैं। मौलिक कृतियों में 6 प्रकाशित पुस्तकें एवं 6 सम्पादित पुस्तकें हैं। कुल 35 शोध पत्र विभिन्न शोध प्रत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। अनेक अकादमिक संस्थानों, समितियों के आजीवन सदस्य तथा कुल 6 राष्ट्रीय संगोष्ठियों का सफल संयोजन कर चुके हैं। गंगाघाटी, सरयूघाटी एवं अचिरावती घाटी के पुरातात्त्विक एवं सांस्कृतिक सर्वेक्षण में सन्नद्ध हैं । डॉ. पाण्डेय विगत 22 वर्षों से हीरालाल रामनिवास स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खलीलाबाद, संत कबीर नगर (उ.प्र.) में अध्यापनरत हैं | सम्प्रति आप उपाचार्य, प्राचीन इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग के पद पर कार्यरत हैं।
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