आज की उपलब्ध सभी भाषाओं में ‘संस्कृत’ को सबसे प्राचीन भाषा माना गया है। किसी भी भाषा को एक सुसंगठित और सुनिश्चित स्वरूप ‘व्याकरण’ प्रदान करता है। इसीलिए, ‘व्याकारण’ को किसी भी भाषा की सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई माना गया है-‘मुखं व्याकरणं स्मृतम्’ । ‘व्याकरण’ भाषा की रीढ़ होता है; भाषा-रूपी भवन की आधारशिला [नींव] होता है। इसलिए, संसार की किसी भी भाषा को जानने-समझने और पढ़ने-लिखने के लिए सबसे पहले उस भाषा के व्याकरण का सम्यक् ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है; व्याकरण के ज्ञान के बिना उस भाषा को जाना-समझा नहीं जा सकता है ।
“संस्कृत के अनभिज्ञ जिज्ञासुओं को भाषा की अन्तिम इकाई ‘अक्षर’ से लेकर मनोगत भावों की अभिव्यक्ति के आधार ‘वाक्य-संरचना’ [हिन्दी से संस्कृत एवं संस्कृत से हिन्दी में वाक्य बनाने, जानने और समझने ] में सिद्धस्त तथा निपुण बनाना- इस पुस्तक का उद्देश्य है”।
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