संक्षिप्त योगवासिष्ठ Sankshipt Yog Vaasishtha 2 Volumes
₹1,990.00 – ₹2,880.00
स्वामी वेंकटेशानंद कृत ‘सुप्रीम योग’ का हिंदी अनुवाद
AUTHOR | Veena Sharma |
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YEAR |
2016
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PAGES | 824 Pages |
LANGUAGE | Sanskrit, Hindi |
BINDING | Hardbound and Paperback |
ISBN |
9788177023817
|
PUBLISHER | Pratibha Prakashan |
पुस्तक परिचय
महर्षि वाल्मीकि प्रणीत योगवासिष्ठ, अद्वैत वेदान्त का एक लोकप्रिय ग्रन्थ है। भगवान श्री राम और ऋषि वसिष्ठ के बीच संवाद के रूपमें प्रस्तुत यह ग्रन्थ जीवन-मृत्यु-मोक्ष से संबंधित अनेक दार्शनिक पहलुओं को रोचक उदाहरणों के माध्यम से प्रस्तुत करता है। छः प्रकरणों वैराग्य, मुमुक्षु उत्पत्ति, स्थिति, उपशम और निर्वाण में विभाजित इस ग्रन्थ की रूढ़िभंजक दृष्टि अनुभव पर खरी उतरने के कारण आधुनिक प्रश्नशील तथा खोजी मन को अत्यंत आकर्षक लगती है। इसमें देवी-देवताओं की स्वायत्त सत्ता को नकार कर एक सत्य में स्थापित करने का विलक्षण साहस प्रदर्शित किया गया है।
इस ग्रन्थ में अभिव्यंजित काकतालीय न्याय पर निरंतर विचार और मनन करने से व्यक्ति को इस जगत के आकस्मिक प्रकटीकरण और उसकी स्वप्नवत् प्रकृति की अनुभूति होती है। जिससे कि जीवन जीने की प्रक्रिया आनन्दमय और सार्थक हो जाती है।
यद्यपि इस ग्रन्थ पर अनेकों टीकाएँ उपलब्ध हैं. इसे दैनंदिनी के रूप में प्रस्तुत करने का विचार सर्वप्रथम श्री स्वामी वेंकटेशानन्द जी के अंतर्मन में आया। आज के व्यस्त जीवन में किसी के पास भी वृहदाकार ग्रन्थों के पठन-पाठन के लिए अतिरिक्त समय नहीं है। इसलिए स्वामीजी ने संपूर्ण योगवासिष्ठ में से चयनित उद्धरणों को दैनिक स्वाध्याय हेतु संकलित कर अत्यंत प्रशंसनीय कार्य किया है। अंग्रेजी में यह पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई कि इसके हिन्दी अनुवाद की माँग की जाने लगी। इस कार्य को डॉ. वीणा शर्मा ने साधना के रूप में संपन्न किया है।
लेखक परिचय
वीणा शर्मा जून 2010 से जून 2012 तक भारतीयउच्चतर अध्ययन संस्थान, शिमला से संबद्ध शोधकर्त्री रहीं। इसके अलावा वे सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा अध्ययन हेतु प्रज्ञा संस्थान की संस्थापक निदेशिका भी रहीं। अफ्रीकी अध्ययन केन्द्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से उन्होंने 1991 में विद्यावारिधि की उपाधि प्राप्त की। आकाशवाणी. दिल्ली की स्वाहीली सेवा के प्रमुख पद पर कई वर्षों तक कार्य करने के पश्चात् वे Africa Quarterly की संपादिका भी रहीं। अफ्रीकी जीवन. और वेदान्त से संबद्ध उनके कई आलेख विश्व के प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी अब तक की प्रकाशित पुस्तकों में Advaita Vedanta and Akan: Inquiry into an Indian and African Ethos (IIAS, Shimla 2015 ), हिन्दी – स्वाहिली शब्दकोष (केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली, 2006), Kailash Manasarovar: A Sacred Journey (Roli Books, New Delhi, 2004), Folk Tales of East Africa (Sterling Publishers, 1982) हैं, जबकि वे वर्तमान में Stories from the Upanishads पर कार्यरत हैं।
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Bind Type | Hardbound, Paperback |
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