भारतीय दर्शन में सम्बन्ध-विमर्श लेखिका द्वारा शोधपूर्वक लिखा गया ग्रन्थ है जो विभिन्न आस्तिक, नास्तिक तथा अन्य दार्शनिक सम्प्रदायों में विहित सम्बन्धविषयक व्याख्या को निदर्शित करता है। ‘सम्बन्ध’ एक ऐसा तत्त्व है, जो लौकिक व्यवहार में व्यवस्था को पुष्ट करने के साथ ही दर्शन के क्षेत्र में विचारों तथा निर्णयों की अन्योन्यसम्बद्धता को प्रमाणित करता है। विज्ञान के इस तार्किक युग में भारतीय दर्शनों की उपयोगिता अपेक्षित रूप में नहीं स्वीकार की जा रही है। सम्बन्ध तत्त्व का अनुसन्धान विज्ञान और दर्शन दोनों के ही क्षेत्र में समानत: उपयोगी है चाहे मानवविज्ञान हो, सामाजिकविज्ञान हो, भारतीय दर्शन हो अथवा पाश्चात्य दर्शन।
इस पुस्तक में भारतीय दर्शनों, विशेषत: पदार्थवादी दर्शनों की सम्बन्धविषयक अवधारणा का विश्लेषण इस उद्देश्य से करने का प्रयास किया गया है कि वर्तमान सामाजिक, सांस्कृतिक तथा वैचारिक विक्षोभ के कारण असामञ्जस्य एवं मानवता के विकास में बाधक वैश्विक चेतना के विखण्डन तथा बिखराव को संहत कर परम्परागत विकास की दिशा दी जा सके। सम्भवत: इस आभ्यन्तर प्रेरणा ने ही इस पुस्तक का रूप और आकार प्रदान किया।
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