भारतीय दार्शनिक जगत् के आस्तिक वर्ग में विद्यमान मीमांसा दर्शन में वैदिक वाक्यों में अर्थ विश्लेषण के माध्यम से ही दार्शनिक स्वरूप प्राप्त किया है। मीमांसा दर्शन के स्वरूप तथा वैशिष्टय के प्रकाशन के उद्देश्य से इस मीमांसा दर्शन-विमर्श ग्रन्थ की रचना की गई है। प्राकृत ग्रंथ के उद्देश्य की पूर्ति हेतु सम्पूर्ण ग्रन्थ को चार परिच्छेदों में विभक्त किया गया है। इनमें प्रथम परिच्छेद को संस्कृत-निबन्धः यह शीर्षक प्रदान कर इसमें बीसवीं शती में विद्यमान मीमांसा की स्थिति की विवेचना के साथ कार्यकारणभाव, भाट्ट सम्प्रदाय के प्रस्थानभेद, प्रामाण्यवाद, विपरीत ख्याति, भट्ट मत ना आत्मा ने- कान्तवाद, पूर्वमीमांसा की दृष्टि में मोक्ष स्वरूप, जैसे मीमांसा में विशेष रूप से विचार सात आलेखों का संस्कृत भाषा में समायोजन किया गया है। द्वितीय परिच्छेद में मीमांसा में वेदार्थ की समन्विति के साथ मीमांसा में श्रेय तथा प्रेय, एकवाक्यता, आदि शास्त्रीय विषयों के साथ इसकी लोकोप योगिकता को भी प्रकाशित करने का प्रयास किया गया है। ग्रन्थ के तृतीय परिच्छेद में ज्ञान, प्रमाण लक्षण तथा उसकी उपादेयता को भी मीमांसा की दृष्टि से रेखाङित करने का प्रयास किया गया है। चतुर्थ परिच्छेद में ईश्वर, के, सम्बन्ध तथा अभाव के वैशिष्ट्य को भी भाट्ट मीमांसा की दृष्टि से प्रकाशित करते हुए ग्रन्थ, पूर्ण किया गया है।
मीमांसा दर्शन विमर्श – Mimansa Darshan Vimarsh
₹795.00 Original price was: ₹795.00.₹640.00Current price is: ₹640.00.
Author Somnath Nene
Edition | 2008 |
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Pages | 293 |
ISBN | 8177021776 |
Categories: History, Indian Philosophy, Reference Work
Tags: Mimansa, nene
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